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सोच

  • लेखक की तस्वीर: अर्चना श्रीवास्तव
    अर्चना श्रीवास्तव
  • 28 दिस॰ 2024
  • 1 मिनट पठन

अपडेट करने की तारीख: 4 फ़र॰

हमेशा तुम अपनी सोचते हो,

कभी मेरे लिए सोच कर तो देखो ।

उलझने कभी आप की कम नही होती

कभी मेरी उलझने सुलझा कर तो देखो ।

वक्त हमेशा मेरा मजाक बनाता है

कभी मेरे वक्त में तो जाके देखो ।

जिन्दगी दबी है एहसानो से

उन दबाव को कम करके तो देखो ।


सांसे घुटती है मेरी हरपल,

उन घुटन को हटाकर तो देखो ।

एक उम्मीद की खुली हवा में सांस लूं

वो खुली हवा देकर तो देखो ।


मेरे अरमान हर क्षण घायल है

उस पर मलहम लगा कर तो देखो ।

साथ हर क्षण है तुम्हारा

कभी अन्दर आकर तो देखो ।

सपने जो देखती थी कभी

उन्हे कभी सजाकर तो देखो ।

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