जइसे आमवाँ के मोजरा से रस चुवेला – भोजपुरी निबंध संग्रह की सजीव समीक्षा
- अर्चना श्रीवास्तव
- 1 मार्च
- 3 मिनट पठन
लेखक- भगवती प्रसाद द्विवेदी
समीक्षक- अर्चना श्रीवास्तव
विधा-निबंध- लेखन
'लाले-लाले ओठवा से बरिसे ललईया हो कि रस चूवेला, जइसे आमवाँ के मोजरा से रस चुवेला '
आज हम जवना किताब के बारे में बतावऽतानी ऊ समीक्षा ना ह ,हमार ई किताब खातिर आपन विचार आ भाव हवे, जवन हम रऊआ सब तक पहुंचावत बानी ।
' जइसे आमवाँ के मोजरा से रस चुवेला ', जेतना ई किताब के शीर्षक में मधुरता बा ओतने ई किताब के लेखक आदरणीय 'श्री भगवती प्रसाद द्विवेदी' जी के व्यक्तित्व में सरसता अऊर सहजता बा, प्रकृति इहांके अइसन कवनो गुण, विधा नइखे जवना से नवजले ना होखे, कविता, व्यंग, उपन्यास, कहानी अऊरी निबंध सब मे इहांके रचना कइले बानी । इ कहे में हम तनिको ना सकुचाईब कि इहांके कवनों परिचय के मोहताज नइखीं।

हम नइखी सोच पावत कि ई 'निबंध संग्रह' के बारे में ऊ ऊंचाई तक हम कुछ कह पाइब, जवना ऊंचाई तक ऊहां के साहित्य रचना बा बाकिर हम कोशिश करतानी कउनो गलती होई त माफ करब सभे।
जहां तक हमरा जानकारी बा जइसे हिन्दी निबंध के पहिला लेखक 'भारतेन्दु हरिश्चन्द्र' के मानल जाला वइसे ही भोजपुरी के पहिला निबंधकार 'आचार्य महेंद्र शास्त्री' रहले आ उन्हुकर पहिल निबंध 'रहे पानी' ।
लेकिन भोजपुरी मे बहुत ज्यादा नइखे लिखल गइल, जहां तक हमार आपन सवाल बा त हम पहिला बार भोजपुरी निबंध पढनी ह, पढके अच्छा लागल बहुत रोचकता बा किताब में, आपन लोक-संस्कृति के लोग बिसार देले बा ,लेकिन ई किताब आपन लोक-संस्कृति के धरोहर के रूप में बा, ऊ गीत कहानी जवन हमनी के दादी, परदादी गावत रहलीं ऊ सब पढके आपन मानस पटल पर ईयाद ताजा हो गइल ,छोट रहनी त अपना दादी के मुंह से सुनले रहनी उ सब लोकगीत पढके, मन अघा गईल-
'निमिया के डारी मईया
झूले लावें ली हिंडोलवा
मइया गावेली गीत की
झूली-झूली ।
'ई' निबंध संग्रह 'के तीन भाग बा पहिला 'हमार जिनिगी हमार सिरिजना, दूसरका भाग 'लालित्य ' अऊरी तीसरका भाग 'बदलाव के सुगबुगाहट', कुछ अंश रऊआ सबसे साझा करतानी' - लोककथा के इतिहास ओतने पुरान बा जतना मनई के इतिहास। आदिकाल से ई कहल सुनल जात रहल होइहे स, आ लोकगीत के माध्यम बनाके अपना बात के रखल जात रहे चाहे समुझावल जात रहे-
लोकगीत मे राम के महत्व समुझावत ई गीत--
रामे के चिरई,रामे के खेत
खालऽ चिरई भरि-भरि पेट
लोक परब मे सकारात्मक सोच--
'छठ एह माने में लोक परब ह कि एह में पंडित पुजारी आ जंतर-मंतर के कवनो जरूरत ना परे आ सरधा-भाव से गावल छठी मइया के गीत अउर, मरद-मेहरारू के आंतर के भाखल-भखौटी, दिल से फूटल बानी पूजा-पाठ आ नाच एगो अलग-अलग रूप में देखेके मिलेला जइसे---
डोमकच स्वांग पियऊ,
ना जा पुरूब का ओर,
पुरूब के देस में टोना बहुत बा
पानी बहुत कमजोर!
चइत में प्रेम अऊरी प्रेयसी के बखान बहुत खुबसूरती से कइल गइल बा--
ए रामा गोरी-गोरी बहिया में
हरी-हरी चुडिया हो रामा
लिलरा पर
लिलरा पर हरी रंग की
विंदिया हो रामा-
शादी-वियाह में गावल मंगल गीत--
दिनवा हरेलू ए बेटी
भुखिया रे पियसिया
रतिया हरेलू ए बेटी
बाबा आंखिरे नीनिया।
भोजपुरी लोकोक्ति में नारी --
नइहर जो बेटी, ससुरा जो
जांगर चलाके सगरे खो!
एही बात के एहू तरी कहल जाला
बेलदार के बेटी
ना नइहरे सुख, ना ससुरे सुख !
'खरविरवा से सेहत---
मकई के रोटी मिले
खा लीहीं भरपूर
लीवर ठीक रही सदा
टीबी भागी दूर ।

अऊरी निबंध जवन भीतर तक झकझोर गइल --'भितरिया ताकत जुटावे के उतजोग' , 'माई के जिउवा गाई अस', 'मन के बात चाह के संग', 'आदरा के अगुवानी आ समहुत के सुतार--आवत ना बरिसे अदरा
जात ना बरिसे हस्त
घाघ कहेले तब भला
का करिहे गिरहत?
आम बनल खास-- बाकिर तनी सोची त सही ,अगर आम अदिमी के सांचो के सफाया हो जाई त मए सरकारी योजना आ कार्यक्रम के का होई ? केकरा खातिर बड-बड मोट रकम उगहल जाई?
हम त रऊआ सबसे इहे कहब कि किताब जरूर पढ़ी ई किताब मे बहुत ज्ञयान आ रस बा, लेखक खातिर हम एतने कहब--
धन्य भोजपुरी ई हमार
आ धन्य इहां के माटी
जवना माटी मे जन्म इहांके (लेखक) के भइल
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