यात्रियों के नजरिये में
शाहाबाद
वास्तव में इतिहास को विभिन्न परम्पराओं मान्यताओं और महिमा कहानियों और किसी भी देश या जाति के संघर्षो का सामूहिक खाता कहा जाता है।
किसी भी क्षेत्र, धर्म, भौगौलिक अवस्था पर इतिहास लिखने का कार्य आसान नहीं है उसे लिखने के लिए व्यापक संकल्प की आवश्यकता होती है।
लेखक श्री लक्ष्मीकांत मुकुल ने ऐतिहासिक घटनाओं को आधुनिक रूप से लिखने के लिए गहन प्रयास और अध्ययन किया है जो सराहनीय है। इनकी कविताएं और आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती है।

'लाल चोंच वाले पक्षी', 'घिस रहा है धान का कटोरा' 'कविता संग्रह' प्रकाशित हो चुकी है। इसी कड़ी में उनकी पुस्तक 'यात्रियों की नजर में शाहाबाद' पढ़ने को मिला । जिसमें यात्री 'जेम्स रेनेल' 'बुकानन की रिपोर्ट' और स्थानिय वृद्धों के कथनों के माध्यम से अपनी यात्राओं से ज्ञान अर्जित कर इस पुस्तक को हम तक पहुचाया जिसे 'सृजनलोक' प्रकाशन नई दिल्ली ने प्रकाशित किया है-- इस पुस्तक में छः आलेख संकलित है जिसे पढ़ कर हम क्षेत्रीय इतिहास की समझ को विकसित कर सकते हैं-
औपनिवेशिक काल में दिनारा क्षेत्र और उसकी प्रतिरोधी मेजर जेम्स रेनेल द्वारा सन् 1773 में तैयार किये गये रॉयल बंगाल एटलस में दर्शाये गये स्थितियों के आधार पर इस क्षेत्र का ऐतिहासिक रेखांकन किया जा सकता है। इस नक्शे में काव नदी के तत्कालिन बहाव मार्ग को भी सही तरीके से दिखाया गया है ।शाहाबाद के मध्य में बसा दिनारा मुगलकाल में एक महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। दिनारा क्षेत्र की जमींदारी 1786-97 में कोआथ के नबाब को मिली थी । औपनिवेशिक काल में नदियों की जलोढ़ मिट्टी से बना यह क्षेत्र भरकी कहा जाता है ।
यात्रियों के नजरिये में शाहाबाद यात्री कार्य या ज्ञान की तलाश में जब दूर की यात्रा करते हैं तब अपने समक्ष एक ऐसी दुनिया पाते हैं जो खुद के भौतिक और सांस्कृतिक परिवेश से भिन्न होती है शाहाबाद क्षेत्र में जिस प्रथम यात्री का विवरण प्राप्त होता है, वह सातवीं शती में आया चीनी यात्री हृवेन सांग था । मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर अपनी विजय यात्रा में 1529 ई. में शाहाबाद के उत्तरी भाग से गुजरा था ।
शिया मुस्लिम द्वारा प्रारंभ सिमरी का महावीरी झंडा - सामाजिक और धार्मिक समरसता का एक अद्भुत उदाहरण गांव सिमरी में मिलता है, जहां दशहरे में महावीरी झंडा उठाने की प्रथा एक शिया मुस्लिम द्वारा सौ वर्ष पूर्व आरम्भ की गयी जो आज भी बदस्तूर जारी है। सिमरी में बसा शिया मुस्लिम परिवार कोआथ के नवाब परिवार की एक शाखा माना जाता है ।
बक्सर में गंगा : अतीत से वर्तमान तक- पौराणिक मिथको के अनुसार बक्सर के गंगा तट पर ही विष्णु का वामन अवतार हुआ था और त्रेता युग में विश्वामित्र की यज्ञ रक्षा के लिए राम और लक्ष्मण अयोध्या से लाये गये थे । गंगा घाटी की खोज सरकार द्वारा 1926 ई. में आशुतोष बनर्जी शास्त्री के निर्देशन में बक्सर टीला के खुदाई से हुई ।
ग्रामीण इतिहास की समझ - मेरा गांव मेरा इतिहास की समझ पीढ़ी इंसानी रिश्तों सहाकार के सम्बन्ध को समझने-सीखने का सार्थक प्रयास है
शाहाबाद गजेटियर का महत्व - यह सोलह अध्याय में विभक्त है। इतिहास, कृषि, सिंचाई, उद्योग, बैंकिग व्यपार, वाणिज्य, यातायात, आर्थिक संबंध, प्रशासन, न्याय, भू-राजस्व, शिक्षा-संस्कृति, चिकित्सा, स्वास्थ्य, सामाजिक सेवाएं, और प्रसिद्ध स्थल, जैसे विषय पर शामिल है। शाहाबाद जिला 1765में बना । मध्यकालीन भक्त कवि तुलसीदास रघुनाथपुर के निवासी थे, डिहरी में सोन पार करने के लिए नावों पर बासो की चचरी बनती थी, जिसमें 14,000 बांस लगते थे, जिले की पुरानी देशी माप-तौल प्रणाली अब से कुछ भिन्न थी।
पुस्तक का शीर्षक पाठक को गहरी अर्न्तदृष्टि प्रदान करती है । इसमें 1773 से 1962 के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को परिभाषित किया गया 1 पुस्तक में घटना व्यापक समय और कालानुक्रमिक रूप से आगे बढ़ती है। 1773 में जेम्स रेनेल का एटलस, 1786-97 को आथ की जमींदारी, 1793 लार्ड कार्नवालिस के समय में शाहाबाद की जमींदारी, सुदुर गांवो के संसाधन की खोज, जिसका नेतृत्व बुकानन ने सन् 1812-13 में पूरा किया। धरकंधा का दरियामा ज्ञानमार्गी संत दरियादास आधार भूमि है सन् 1674-1780 में जिसका पादुर्भाव हुआ, सन् 1857 के प्रथम स्वाधीनता आंदोलन बंगाल टेनेंसी एक्ट 1884 में लागू कास्तकार की जमीन का फैसला, दो सौ दस वर्ष पहले का सामाजिक सांस्कृतिक, धार्मिक आर्थिक स्थितियों को अवगत कराता यह पुस्तक, उस समय के कठिन और संक्रमणशील सामाजिक स्थिति को दर्शाता है ।
इतने वर्षों बाद भी गांव की हालात बहुत बेहतर नही हुआ है। कुछ गांव तो आज भी गुमनामी के अंधेरे में है जहां आजादी से पूर्व और आजादी के समय अपने देश पर सर्वस्व न्यौछावर करने को तैयार थे।
इस पुस्तक के माध्यम से आप हर उस जगह के बारे में जान सकते हैं। जहां की पृष्ठभूमि ऐतिहासिक और संतो की ज्ञान को समेटे हुये है 1 इस पुस्तक के बारे में इतना ही कहूंगी, यह ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित होते हुये भी रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है । जिसे पढ़ने के बाद विराम की इच्छा नही होगी, अविलम्ब पूर्ण करने की इच्छा जागृत होगी। भाषा सहज और सरस होने से इतिहास समझने में कोई कठिनाई नही होगी।

लेखक श्री लक्ष्मीकांत मुकुल जी को बधाई और शुभकामनाएं, आप निरन्तर कर्मपथ पर अग्रसर रहे ।
अर्चना श्रीवास्तव