- अर्चना श्रीवास्तव
- 12 अप्रैल
- 2 मिनट पठन

जननी जो नयन-घट प्यार जल छलके,
उतर जाये अन्तर में हलके-हलके ।
'मुखर-मौन' काव्य-संग्रह 'श्री हीरालाल अमृत पुत्र' जी द्वारा लिखा गया अनुपम संग्रह है । 1992 में प्रथम संस्करण निकला था । इसके मुद्रक-सुलभ प्रिंटर्स (बलिया) , जिसके संस्थापक 'श्री नरेंद्र शास्त्री ' जी थे ।
जब घर आते तो उनकी कविता 'भावी बहु के प्रति ' गुनगुनाते थे ।
आओगी जब मेरे घर तुम दीप सिखा सी ,
भर दोगी आलोक नयन मे, मन प्रांगण में

घर में सभी कहते आप सिर्फ दो पंक्ति ही गुनगुनाते हैं,पूरी कविता सुनाइये उन्होने कहा-मैं कवि को ही घर में बुला देता हूं उन्ही से सुन लो- श्री नरेंद्र शास्त्री जी कवि को एक साधक कवि मानते थे- उन्ही के शब्दो में --- इन कविताओ के साथ मन ज्योंही एकाकार होता है, ये हमारी हमसफर बन जाती है - एक निश्छल दोस्त की तरह रास्ता दिखाती सी जान पडती है। हमे आश्चर्य है कि कवि ने इतनी सशक्त रचनायें लिखकर भी अपने को गोपनीयता के धुंध में क्यो छिपा रखा है ? पर , चैत्र माह में आंछी के फूल की खुशबु हमे मतवाला बना जाती है,वैसे ही 'अमृत पुत्र "की कवितायें ज्योंही किसी सुहृद-संवेदनशील गुण ग्राहक पाठक की दृष्टि में पडती है वह दीवाना -सा हो जाता है । मेरा विचार 'मुखर-मौन पढने के बाद यथावत है---
हर दिशा से आ रही विषवाहिनी बोझिल हवा है,
साथ यदि तुम हो सदा अमरत्व का होगा सहारा ।
प्रणय के पीयूष से पग है प्रलय का नित्य हारा,।।
उनकी हर कविता आत्मसात करने की इच्छा हो जाती है--इस कठोर धरा पर भी सहजता से उर्जा मिलती है । और निरन्तर कर्मपथ पर प्रेरित करती है। उनकी कविताओ में अपने मातृभूमि और देश प्रेम के स्वर है ,जो आत्मिक सुख और गर्व महसूस कराती है ।

आओ भारत माता का ज्यान करें,
कोटि-कोटि कंठो से हम गुण-गान करें।
मिट्टी जो हम सबका तन निर्माण करें,
पवन , प्राण का ,जीवन का आधान करें
पानी जिसका नस-नस मे बन लहू बहे,
पर्वत मांसपेशियां बन बल-दान करें ।
इस काव्य-संग्रह में जाने माने साहित्यकारों की अपनी-अपनी सममतियां है जैसे -> महादेवी वर्मा, आचार्य पं0 सीताराम चतुर्वेदी, श्री रामसिंहासन सहाय 'मधुर ' श्री नर्मदेश्वर चतुर्वेदी, डाक्टर विवेकी राय, डाक्टर शोभनाथ लाल ।