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लेखक की तस्वीर: अर्चना श्रीवास्तवअर्चना श्रीवास्तव

यात्रियों के नजरिये में

शाहाबाद


वास्तव में इतिहास को विभिन्न परम्पराओं मान्यताओं और महिमा कहानियों और किसी भी देश या जाति के संघर्षो का सामूहिक खाता कहा जाता है।

किसी भी क्षेत्र, धर्म, भौगौलिक अवस्था पर इतिहास लिखने का कार्य आसान नहीं है उसे लिखने के लिए व्यापक संकल्प की आवश्यकता होती है।

लेखक श्री लक्ष्मीकांत मुकुल ने ऐतिहासिक घटनाओं को आधुनिक रूप से लिखने के लिए गहन प्रयास और अध्ययन किया है जो सराहनीय है। इनकी कविताएं और आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती है।

अर्चना श्रीवास्तव "यात्रियों के नजरिये में शाहाबाद" पुस्तक हाथ में पकड़े हुए दिखाई दे रही हैं, जिन्होंने इसकी समीक्षा लिखी है।


'लाल चोंच वाले पक्षी', 'घिस रहा है धान का कटोरा' 'कविता संग्रह' प्रकाशित हो चुकी है। इसी कड़ी में उनकी पुस्तक 'यात्रियों की नजर में शाहाबाद' पढ़ने को मिला । जिसमें यात्री 'जेम्स रेनेल' 'बुकानन की रिपोर्ट' और स्थानिय वृद्धों के कथनों के माध्यम से अपनी यात्राओं से ज्ञान अर्जित कर इस पुस्तक को हम तक पहुचाया जिसे 'सृजनलोक' प्रकाशन नई दिल्ली ने प्रकाशित किया है-- इस पुस्तक में छः आलेख संकलित है जिसे पढ़ कर हम क्षेत्रीय इतिहास की समझ को विकसित कर सकते हैं-


  1. औपनिवेशिक काल में दिनारा क्षेत्र और उसकी प्रतिरोधी मेजर जेम्स रेनेल द्वारा सन् 1773 में तैयार किये गये रॉयल बंगाल एटलस में दर्शाये गये स्थितियों के आधार पर इस क्षेत्र का ऐतिहासिक रेखांकन किया जा सकता है। इस नक्शे में काव नदी के तत्कालिन बहाव मार्ग को भी सही तरीके से दिखाया गया है ।शाहाबाद के मध्य में बसा दिनारा मुगलकाल में एक महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। दिनारा क्षेत्र की जमींदारी 1786-97 में कोआथ के नबाब को मिली थी । औपनिवेशिक काल में नदियों की जलोढ़ मिट्टी से बना यह क्षेत्र भरकी कहा जाता है ।

  2. यात्रियों के नजरिये में शाहाबाद यात्री कार्य या ज्ञान की तलाश में जब दूर की यात्रा करते हैं तब अपने समक्ष एक ऐसी दुनिया पाते हैं जो खुद के भौतिक और सांस्कृतिक परिवेश से भिन्न होती है शाहाबाद क्षेत्र में जिस प्रथम यात्री का विवरण प्राप्त होता है, वह सातवीं शती में आया चीनी यात्री हृवेन सांग था । मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर अपनी विजय यात्रा में 1529 ई. में शाहाबाद के उत्तरी भाग से गुजरा था ।

  3. शिया मुस्लिम द्वारा प्रारंभ सिमरी का महावीरी झंडा - सामाजिक और धार्मिक समरसता का एक अद्भुत उदाहरण गांव सिमरी में मिलता है, जहां दशहरे में महावीरी झंडा उठाने की प्रथा एक शिया मुस्लिम द्वारा सौ वर्ष पूर्व आरम्भ की गयी जो आज भी बदस्तूर जारी है। सिमरी में बसा शिया मुस्लिम परिवार कोआथ के नवाब परिवार की एक शाखा माना जाता है ।

  4. बक्सर में गंगा : अतीत से वर्तमान तक- पौराणिक मिथको के अनुसार बक्सर के गंगा तट पर ही विष्णु का वामन अवतार हुआ था और त्रेता युग में विश्वामित्र की यज्ञ रक्षा के लिए राम और लक्ष्मण अयोध्या से लाये गये थे । गंगा घाटी की खोज सरकार द्वारा 1926 ई. में आशुतोष बनर्जी शास्त्री के निर्देशन में बक्सर टीला के खुदाई से हुई ।

  5. ग्रामीण इतिहास की समझ - मेरा गांव मेरा इतिहास की समझ पीढ़ी इंसानी रिश्तों सहाकार के सम्बन्ध को समझने-सीखने का सार्थक प्रयास है

  6. शाहाबाद गजेटियर का महत्व - यह सोलह अध्याय में विभक्त है। इतिहास, कृषि, सिंचाई, उद्योग, बैंकिग व्यपार, वाणिज्य, यातायात, आर्थिक संबंध, प्रशासन, न्याय, भू-राजस्व, शिक्षा-संस्कृति, चिकित्सा, स्वास्थ्य, सामाजिक सेवाएं, और प्रसिद्ध स्थल, जैसे विषय पर शामिल है। शाहाबाद जिला 1765में बना । मध्यकालीन भक्त कवि तुलसीदास रघुनाथपुर के निवासी थे, डिहरी में सोन पार करने के लिए नावों पर बासो की चचरी बनती थी, जिसमें 14,000 बांस लगते थे, जिले की पुरानी देशी माप-तौल प्रणाली अब से कुछ भिन्न थी।

    "यात्रियों के नजरिये में शाहाबाद" पुस्तक का आकर्षक फ्रंट कवर, जिसमें शीर्षक और लेखक लक्ष्मीकांत मुकुल का नाम दिख रहा है।

पुस्तक का शीर्षक पाठक को गहरी अर्न्तदृष्टि प्रदान करती है । इसमें 1773 से 1962 के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को परिभाषित किया गया 1 पुस्तक में घटना व्यापक समय और कालानुक्रमिक रूप से आगे बढ़ती है। 1773 में जेम्स रेनेल का एटलस, 1786-97 को आथ की जमींदारी, 1793 लार्ड कार्नवालिस के समय में शाहाबाद की जमींदारी, सुदुर गांवो के संसाधन की खोज, जिसका नेतृत्व बुकानन ने सन् 1812-13 में पूरा किया। धरकंधा का दरियामा ज्ञानमार्गी संत दरियादास आधार भूमि है सन् 1674-1780 में जिसका पादुर्भाव हुआ, सन् 1857 के प्रथम स्वाधीनता आंदोलन बंगाल टेनेंसी एक्ट 1884 में लागू कास्तकार की जमीन का फैसला, दो सौ दस वर्ष पहले का सामाजिक सांस्कृतिक, धार्मिक आर्थिक स्थितियों को अवगत कराता यह पुस्तक, उस समय के कठिन और संक्रमणशील सामाजिक स्थिति को दर्शाता है ।


इतने वर्षों बाद भी गांव की हालात बहुत बेहतर नही हुआ है। कुछ गांव तो आज भी गुमनामी के अंधेरे में है जहां आजादी से पूर्व और आजादी के समय अपने देश पर सर्वस्व न्यौछावर करने को तैयार थे।


इस पुस्तक के माध्यम से आप हर उस जगह के बारे में जान सकते हैं। जहां की पृष्ठभूमि ऐतिहासिक और संतो की ज्ञान को समेटे हुये है 1 इस पुस्तक के बारे में इतना ही कहूंगी, यह ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित होते हुये भी रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है । जिसे पढ़ने के बाद विराम की इच्छा नही होगी, अविलम्ब पूर्ण करने की इच्छा जागृत होगी। भाषा सहज और सरस होने से इतिहास समझने में कोई कठिनाई नही होगी।


"यात्रियों के नजरिये में शाहाबाद" पुस्तक का बैक कवर, जिसमें पुस्तक का संक्षिप्त विवरण और प्रकाशक की जानकारी दी गई है।

लेखक श्री लक्ष्मीकांत मुकुल जी को बधाई और शुभकामनाएं, आप निरन्तर कर्मपथ पर अग्रसर रहे ।


अर्चना श्रीवास्तव


लेखक की तस्वीर: अर्चना श्रीवास्तवअर्चना श्रीवास्तव

फाल्गुनी बयार में लहलहाते पेड़-पौधे, आम और महुआ की खिलती मोजरें, मधुमक्खियाँ मंडराते हुए और सूरज की सुनहरी किरणें।

मचल रही है फाल्गुनी बयार

सहला रही पेड़ पौधे के तन को,

पतझड़ में जो उदासी आ गई थी उनके तन पर,

उसे मरहम लगा रही है ।

धीरे-धीरे मुस्कराने लगे हैं

पेड़-पौधे

उनके तन पर नई कोपले जो आने लगी है ।

खुशबू बिखेरने लगी है,

आम और महुआ की मोजरें,

भौरें मंडराने लगे उन्मुक्त भाव से ।

हट गयी है ,जो कोहरे की चादर

सूरज की लालिमा नज़र आने लगी है ।मुरझाई कलियां फिर मुस्कराते लगी हैं।

फैली थी जो फिजा में विषैलीं हवायें ,

फाल्गुनी बयार कुछ तो कम करने लगी हैं ।

अलसाए बदन पर जो लगी बयार तो

नयी उर्जा जगने लगी है ।

मचल रही है फाल्गुनी बयार।

लेखक- भगवती प्रसाद द्विवेदी

समीक्षक- अर्चना श्रीवास्तव

विधा-निबंध- लेखन


'लाले-लाले ओठवा से बरिसे ललईया हो कि रस चूवेला, जइसे आमवाँ के मोजरा से रस चुवेला '

आज हम जवना किताब के बारे में बतावऽतानी ऊ समीक्षा ना ह ,हमार ई किताब खातिर आपन विचार आ भाव हवे, जवन हम रऊआ सब तक पहुंचावत बानी ।

      ' जइसे आमवाँ के मोजरा से रस चुवेला ', जेतना ई किताब के शीर्षक में मधुरता बा ओतने ई किताब के लेखक आदरणीय 'श्री भगवती प्रसाद द्विवेदी' जी के व्यक्तित्व में सरसता अऊर सहजता बा, प्रकृति इहांके अइसन कवनो गुण, विधा नइखे जवना से नवजले ना होखे, कविता, व्यंग, उपन्यास, कहानी अऊरी निबंध सब मे इहांके रचना कइले बानी । इ कहे में हम तनिको ना सकुचाईब कि इहांके कवनों परिचय के मोहताज नइखीं।

जइसे आमवाँ  के मोजरा से रस चुवेला' पुस्तक का कवर – भगवती प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित भोजपुरी निबंध संग्रह, जिसमें लोकसंस्कृति, लोकगीत और समाज की झलक है।

       हम नइखी सोच पावत कि ई 'निबंध संग्रह' के बारे में ऊ ऊंचाई तक हम कुछ कह पाइब, जवना ऊंचाई तक ऊहां के साहित्य रचना बा बाकिर हम कोशिश करतानी कउनो गलती होई त माफ करब सभे।

       जहां तक हमरा जानकारी बा जइसे हिन्दी निबंध के पहिला लेखक 'भारतेन्दु हरिश्चन्द्र' के मानल जाला वइसे ही भोजपुरी के पहिला निबंधकार 'आचार्य महेंद्र शास्त्री' रहले आ उन्हुकर पहिल निबंध 'रहे पानी' ।

लेकिन भोजपुरी मे बहुत ज्यादा नइखे लिखल गइल, जहां तक हमार आपन सवाल बा त हम पहिला बार भोजपुरी निबंध पढनी ह, पढके अच्छा लागल बहुत रोचकता बा किताब में, आपन लोक-संस्कृति के लोग बिसार देले बा ,लेकिन ई किताब आपन लोक-संस्कृति के धरोहर के रूप में बा, ऊ गीत कहानी जवन हमनी के दादी, परदादी गावत रहलीं ऊ सब पढके आपन मानस पटल पर ईयाद ताजा हो गइल ,छोट रहनी त अपना दादी के मुंह से सुनले रहनी उ सब लोकगीत पढके, मन अघा गईल-

   'निमिया के डारी मईया

    झूले लावें ली हिंडोलवा

    मइया गावेली गीत की

        झूली-झूली ।

'ई' निबंध संग्रह 'के तीन भाग बा पहिला 'हमार जिनिगी हमार सिरिजना, दूसरका भाग 'लालित्य ' अऊरी तीसरका भाग 'बदलाव के सुगबुगाहट', कुछ अंश रऊआ सबसे साझा करतानी' - लोककथा के इतिहास ओतने पुरान बा जतना मनई के इतिहास। आदिकाल से ई कहल सुनल जात रहल होइहे स, आ लोकगीत के माध्यम बनाके अपना बात के रखल जात रहे चाहे समुझावल जात रहे-

लोकगीत मे राम के महत्व समुझावत ई गीत--

        रामे के चिरई,रामे के खेत

        खालऽ चिरई भरि-भरि पेट

        लोक परब मे सकारात्मक सोच--

'छठ एह माने में लोक परब ह कि एह में पंडित पुजारी आ जंतर-मंतर के कवनो जरूरत ना परे आ सरधा-भाव से गावल छठी मइया के गीत अउर, मरद-मेहरारू के आंतर के भाखल-भखौटी, दिल से फूटल बानी पूजा-पाठ आ नाच एगो अलग-अलग रूप में देखेके मिलेला जइसे---

     डोमकच स्वांग पियऊ,

     ना जा पुरूब का ओर,

     पुरूब के देस में टोना बहुत बा

     पानी बहुत कमजोर!

चइत में प्रेम अऊरी प्रेयसी के बखान बहुत खुबसूरती से कइल गइल बा--

ए रामा गोरी-गोरी बहिया में

हरी-हरी चुडिया हो रामा

लिलरा पर

लिलरा पर हरी रंग की

विंदिया हो रामा-

शादी-वियाह में गावल मंगल गीत--

       दिनवा हरेलू ए बेटी

       भुखिया रे पियसिया

        रतिया हरेलू ए बेटी

        बाबा आंखिरे नीनिया।

भोजपुरी लोकोक्ति में नारी --

       नइहर जो बेटी, ससुरा जो

      जांगर चलाके सगरे खो!

      एही बात के एहू तरी कहल जाला

     बेलदार के बेटी

ना नइहरे सुख, ना ससुरे सुख !

'खरविरवा से सेहत---

           मकई के रोटी मिले

           खा लीहीं भरपूर

            लीवर ठीक रही सदा

            टीबी भागी दूर ।

जइसे आमवाँ  के मोजरा से रस चुवेला' पुस्तक का कवर – भगवती प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित भोजपुरी निबंध संग्रह, जिसमें लोकसंस्कृति, लोकगीत और समाज की झलक है।

अऊरी निबंध जवन भीतर तक झकझोर गइल --'भितरिया ताकत जुटावे के उतजोग' , 'माई के जिउवा गाई अस', 'मन के बात चाह के संग', 'आदरा के अगुवानी आ समहुत के सुतार--आवत ना बरिसे अदरा

          जात ना बरिसे हस्त

           घाघ कहेले तब भला

           का करिहे गिरहत?

आम बनल खास-- बाकिर तनी सोची त सही ,अगर आम अदिमी के सांचो के सफाया हो जाई त मए सरकारी योजना आ कार्यक्रम के का होई ? केकरा खातिर बड-बड मोट रकम उगहल जाई?

हम त रऊआ सबसे इहे कहब कि किताब जरूर पढ़ी ई किताब मे बहुत ज्ञयान आ रस बा, लेखक खातिर हम एतने कहब--

        धन्य भोजपुरी ई हमार

        आ धन्य इहां के माटी

जवना माटी मे जन्म इहांके (लेखक) के भइल

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